विधानसभा में बजट पर जीतू पटवारी की कविता क़र्ज़ में सुबह होती है, क़र्ज़ में शाम होती, मेरे प्रदेश की क़िस्मत, यूँ ही तमाम होती है। इनका बजट आता है, सबका बजट बिगड़ जाता है, जाकर पूछो तो गरीब से, वो अब घर कैसे चलाता है, सरकार को जगाने की, हर कोशिश नाकाम होती है, क़र्ज़ में सुबह होती है...क़र्ज़ में शाम होती है। न बिजली बिल में राहत, न बच्चों की फ़ीस में कमी, न ईएमआई पर ब्याज माफ, न मज़दूरों के खाते डली मनी, ये सरकार झूठ की माला पिरोती है, क़र्ज़ में सुबह होती है... क़र्ज़ में शाम होती है। 60 करोड़ का ब्याज, रोज जनता चुकाती है, तब कहीं जाकर, जनादेश की ख़रीदी हो पाती है। गिरवी रख दें जो प्रदेश को, सरकार नहीं ये पनौती है, क़र्ज़ में सुबह होती है...क़र्ज़ में शाम होती है। और अंत में- बंद करो ये झूठ-लूट का तमाशा, बंद करो क़र्ज़ लेना बेतहाशा, बंद करो देना झूठी आशा, बंद करो प्रदेश का सत्यानाशा, चोरी की ये सरकार, रोज विश्वास मत खोती है, क़र्ज़ में सुबह होती है... क़र्ज़ में शाम होती है। भारत माता रोज रोती है, क़र्ज़ में सुबह होती है...क़र्ज़ में शाम होती है। जब भी कभी चर्चा ऐ तबाही आयेगी, शिवराज की तस्वीर सबसे ऊपर पाई जायेगी।