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राज्य
04-Jul-2020

मध्य प्रदेश में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके 22 कांग्रेसी समर्थकों संग सत्ता संतुलन साधने में भाजपा का सामाजिक और भौगोलिक गणित बिगड़ गया है। स्थिति ये है कि विधानसभा की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को देखते हुए मंत्रिमंडल में चंबल और ग्वालियर को तो पलड़ा भारी हो गया। लेकिन 2018 में भाजपा को जीत दिलाने वाले विंध्य और महाकोशल क्षेत्र का नेतृत्व की दृष्टि से लगभग सफाया हो गया है। विंध्य में कुल 30 विधानसभा सीट हैं, जिनमें से 24 पर भाजपा को विजय मिली थी। बावजूद इस इलाके को केवल दो मंत्री पद मिले हैं। असंतुलन से भाजपा को एकतरफा जीत दिलाने वाले विंध्य क्षेत्र के विधायक नाराज हैं। 30 विधानसभा सीटों वाले इलाके में ज्यादातर विधायक नाराज हैं। गिरीश गौतम , केदार शुक्ला नागेंद्र सिंह नागौद सहित कई अन्य विधायक मंत्री पद के दावेदार थे। नागेंद्र सिंह गुड़ और जुगलकिशोर बागरी का तो राज्यसभा चुनाव में वोट निरस्त हो गया था, जिसे नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा था। अब दबी जुबान में कई विधायक कह रहे हैं कि कांग्रेस को जो नुकसान चंबल और ग्वालियर में झेलना पड़ा, भाजपा को वही नुकसान विंध्य से उठाना पड़ सकता है। इसी तरह पिछले विधानसभा चुनाव में महाकोशल की 38 सीटों में से 13 भाजपा के खाते में आयी थीं। इस क्षेत्र से केवल एक विधायक रामकिशोर कांवरे को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर से कमलनाथ सरकार में दो मंत्री थे, शिवराज सरकार में वहां से कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इसी तरह जबलपुर के रीवा और शहडोल संभाग से भी एक-एक मंत्री ही बनाया गया है। vahi bhopal se ek mantri or indore se 1 mantri banaya gaya hai शिवराज सरकार में सबसे ज्यादा 12 मंत्री, चंबल और ग्वालियर संभाग से हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से भी देखें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में सवर्णों के बीच संतुलन बनता नहीं दिख रहा है। मंत्रिमंडल में ठाकुर वर्ग के लगभग दर्जन भर मंत्री हो गए हैं। वहीं, ब्राह्मण वर्ग से केवल तीन ही मंत्री बने हैं। शिवराज सरकार में अब कुल नौ क्षत्रिय (ठाकुर) मंत्री हैं, जबकि ब्राह्मणों में मात्र तीन को मौका मिला है। मंत्रिमंडल में शामिल क्षत्रिय मंत्रियों में से सिंधिया खेमे के गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राजवर्द्धन सिंह दत्तीगांव, महेंद्र सिंह सिसौदिया, ओपीएस भदौरिया शामिल हैं। उधर भाजपा कोटे से चार ठाकुर मंत्री भूपेंद्र सिंह, अरविंद भदौरिया, बृजेंद्र प्रताप सिंह और ऊषा ठाकुर शामिल हैं। वहीं ब्राह्मण वर्ग से मात्र तीन ही मंत्री मिले हैं। इनमें गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा और सिंधिया के साथ आए गिरिराज दंडोतिया के नाम शामिल हैं । शिवराज की पिछली सरकार की तुलना में देखा जाए तो इस बार अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच प्रतिनिधित्व बढ़ा है। anusuchit jati और anusuchit janjati कोटे से चार-चार और ओबीसी कोट से 9 मंत्री शामिल किए गए हैं । सामान्य वर्ग से 17 मंत्री यानी सीधे तौर पर 50 फीसद हिस्सेदारी मिली है। अल्पसंख्यक वर्ग से भी देखा जाए तो ओपी सकलेचा और हरदीप सिंह डंग को नेतृत्व मिला है बहुजन समाज पार्टी से आकर भाजपा से चुनाव लड़ने वाले राम खेलावन पटेल को भी मंत्री बनाया गया है। पटेल 2013 में भाजपा से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे, उसके बाद वे हार्दिक पटेल के संपर्क में भी रहे। गिरिराज दंडोतिया बसपा से विधायक रह चुके हैं । वर्ष 2018 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद इस्तीफा देकर अब भाजपा में आ गए हैं । मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा के ही कई दिग्गज नेताओं के समर्थक मंत्री नहीं बन पाए हैं। राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खास माने जाने वाले रमेश मेंदौला को लेकर आखिरी दौर तक कयास लगाए जाते रहे, लेकिन परिणाम सिफर रहा । केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के भी एकमात्र समर्थक भारत सिंह कुशवाह की एंट्री जातिगत समीकरणों के चलते हुई। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के समर्थक लोधी जाति के विधायकों में से किसी को मौका नहीं मिला। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत और फग्गन सिंह कुलस्ते की सिफारिश पर भी पार्टी ने गौर नहीं किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी इस विस्तार में सर्वाधिक नुकसान झेलना पड़ा है। उनके मात्र चार समर्थक ही मंत्री बन पाए हैं। वहीं भाजपा संगठन और यूं कहें प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत की जोड़ी कैबिनेट में अपने समर्थकों का वर्चस्व बनाने में कामयाब रही।