भोपाल ईएमएस लॉकडाउन के कारण भोपाल में आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।लोगों को दूध,किराने का सामान,आटा- दाल, चावल, सब्जी और फल-फूल भी नहीं मिल पा रहे हैं। जिसके कारण भोपाल में घरों में कैद लोगों में शासन और प्रशासन के प्रति गुस्सा देखने को मिल रहा है।यदि यही हालत एक-दो दिन और रही, तो लोगों को भूखे पेट रहना पड़ेगा। लोगों को कहीं से भी खाने पीने का सामान, भोपाल नगर में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जिला प्रशासन ने ऑनलाइन सामान उपलब्ध कराने के बड़े-बड़े दावे किए। फोन नंबर दिए, किंतु वह सभी फोन बंद हैं। बाजार पूरी तरह से बंद है। भोपाल में लोगों को आटा शक्कर गेहूं चावल दाल सब्जी और फल कहीं से भी किसी भी कीमत पर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। लोग घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।पुलिस प्रशासन की सख्ती के कारण कई एरिया में दूध जैसी आवश्यक सप्लाई भी पिछले 3 दिनों से नहीं हो पा रही है। सांची का दूध भी लोगों के घरों में नहीं पहुंच पा रहा है। लॉकडाउन और आइसोलेशन के नाम पर, लोगों को घरों में कैद करके रख दिया गया है।उन्हें दो टाइम का भोजन भी नसीब नहीं हो पा रहा है। यह स्थिति मध्यमवर्गीय परिवारों की है। निम्नवर्गीय परिवारों में लोग एक टाइम का भी खाना नहीं खा पा रहे हैं। शासन और प्रशासन रोज बड़े-बड़े दावे जरूर कर देता है। यथार्थ में लोगों को घरों में कैद करके भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया गया है। जिला प्रशासन ने तुरंत युद्ध स्तर पर कोई प्रयास नहीं किए,तो स्थिति नियंत्रण से बाहर होते देर नहीं लगेगी। मुख्यमंत्री लॉकडाउन के दौरान शहर का भ्रमण कर रहे हैं। वह खाली सड़कों पर घूम रहे हैं।लोगों के घरों में जाकर पूछें कि उनकी क्या परेशानी है। झुग्गी झोपड़ी में जाएं,तब जाकर उन्हें स्थिति का पता लगेगा। जनप्रतिनिधि अपने घरों में कैद हैं। वह बाहर नहीं निकल रहे हैं। बड़े-बड़े अधिकारी आइसोलेशन में चले गए हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा जो खाना उपलब्ध कराया जा रहा था। वह भी जिला प्रशासन ने बंद करा दिया है। 5 तारीख से सारे स्वयंसेवी संगठनों ने भी खाना और खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना बंद कर दिया है। हजारों लोग जो रोड पर रहते थे। भीख मांगकर गुजारा करते थे। जो लोग बाहर से आकर यहां रह रहे थे वह 3 दिन से भूखे घूम रहे हैं।आम जनता को रुखा सुखा खाने के लिए भी अब आटा दाल चावल नमक और किराने का सामान उपलब्ध नहीं हो रहा है। जिला प्रशासन पूरी तरह से व्यवस्था बनाने में फेल हो गया है। जिम्मेदारी से बचने के लिए लॉकडाउन करके प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया है। राजधानी भोपाल में रहने वाले लोग क्या खाएंगे, क्या पिएंगे , इसकी भी व्यवस्था प्रशासन द्वारा नहीं की गई है। जिन व्यवस्थाओं का दावा प्रशासन द्वारा किया गया था। ऑनलाइन सप्लाई की चैन अपने फोन बंद करके बैठी हुई है। ऐसे में आम जनता का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है।इस पर शासन और प्रशासन को तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। लोग तो अभी यह भी कहने लगे हैं, कोरोनावायरस के संक्रमण से मरें या ना मरें। लॉकडाउन में आम आदमी को भूखे मरने के लिए घरों में कैद करके जिला प्रशासन ने छोड़ दिया है। जिला प्रशासन और सरकार अपनी जिम्मेदारी को समझे। कानून का पालन तभी तक हो सकता है। जब तक उसका पालन करना संभव हो।जिस तरीके की स्थितियां बन रही हैं। उसमें ऐसा नहीं लगता कि आगे चलकर लोग जिला प्रशासन द्वारा बनाए गए कानून का पालन कर पाएंगे।