समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीदी को लेकर आ रही समस्याओं को लेकर अब समर्थन मूल्य पर खरीदी 6 माह से 9 माह तक तक करने की मांग उठाने लगी है l जब नई फसल आती है। उस समय मूल्य सबसे कम होते हैं । लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है। उत्पाद के दाम बढ़ना शुरू हो जाते हैं। समर्थन मूल्य पर फसल आने के समय ही खरीदी करने के कारण किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। इसका लाभ सही मायने में बिचौलिए और सरकार का अमला उठाता है। समर्थन मूल्य पर खरीद करने की समय सीमा यदि 6 से 9 माह कर दी जाए। और हर किसान से उसकी जमीन के रकवे के आधार पर उसकी उपज की खरीदी 6 माह या 9 माह के बीच समर्थन मूल्य पर में की जाएगी, तो सरकार को पूरी खरीदी भी नहीं करनी पड़ेगी। एक-दो माह के बाद समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत किसान को खुले बाजार में मिलने लगेगी। इस बीच किसान अपनी उपज को अपने पास सुरक्षित रूप से रखेगा। इतने बड़े पैमाने पर भंडारण और परिवहन की व्यवस्था भी सरकार को नहीं करनी पड़ेगी । नाही बड़े पैमाने पर सरकार को अपनी पूंजी लगानी पड़ेगी। सरकार अपनी मंशा बताती है कि किसानों के उत्पाद की उचित कीमत मिले।जबकि समर्थन मूल्य की खरीदी करोड़ों अरबों रुपए के भ्रष्टाचार घोटाले, भाई-भतीजावाद और बिचौलियों के माध्यम से कमाई करने के का जरिया बन जाता है वही समर्थन मूल्य पर फसल बेचने के बाद भी किसानो की लागत भी नहीं निकल पाती है। किसानों का पोषण करने की स्थान पर समर्थन मूल्य के नाम पर किसानों का शोषण करने का जो तरीका केंद्र सरकार राज्य सरकारों पूंजीपतियों और उद्योगपतियों ने निकाला है। वह अपने आप में बेमिसाल है। समर्थन मूल्य की खरीदी के दौरान सबसे कम मूल्य पर आईटीसी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां किसानों का माल खरीद कर कुछ ही दिनों बाद 4 गुने दामों पर बेचकर अरबों रुपया कमाती है। वहीं खाद्य पदार्थ तैयार कर ब्रांडिग को नाम पर कई गुने गुने दाम पर बेचकर अरबों खरबों रुपए कमाती है। किसान का शोषण पहले भी हो रहा था । समर्थन मूल्य पर खरीदी के बाद भी शोषण किसानों का ही हो रहा है।