जैन संत आचार्यश्री समयसागर महाराज ने अपने मंगलमय प्रवचन में श्रद्धालुओं को जीवन की गहराइयों से परिचित कराते हुए कहा कि “मन बड़ा चंचल होता है इसकी गति हवाई जहाज से भी तेज है।” उन्होंने कहा कि जब भी कोई धर्म ध्यान या स्वाध्याय करता है तो मन मटकने लगता है लेकिन सांसारिक कार्यों में मन स्वतः एकाग्र हो जाता है। यही कारण है कि साधक के लिए मन को साधना सबसे कठिन कार्यों में से एक है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा “जैसे श्वान को गले में पट्टा डाल देने पर वह नियंत्रण में रहता है वैसे ही मन को भी ध्यान और आत्मनियंत्रण रूपी पट्टा पहनाना आवश्यक है। साधक जब मन को साध लेता है तभी वह आत्मकल्याण की ओर बढ़ता है।” कार्यक्रम की गरिमा और श्रद्धा का समागम कार्यक्रम की शुरुआत श्रीमती शाह (मुंबई) द्वारा मंगलाचरण से हुई। इसके पश्चात सुरेशचंद (दुर्ग) और राजेश जैन (पनागर) की उपस्थिति में कैलाशचंद जैन एवं संजय कटंगहा द्वारा आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के तैलचित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन किया गया। कंचन बिहार दिगंबर जैन समाज द्वारा आचार्यश्री को द्रव्य समर्पित किया गया। वहीं पावन अवसर पर आचार्यश्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य चक्रेश मोदी वीरेश मोदी और राजेश जैन को प्राप्त हुआ।