भारत सरकार जहां पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी कर रही है वहीं मध्य प्रदेश के इंदौर जिला फैमिली कोर्ट ने एक जैन दंपति की तलाक याचिका पर ऐतिहासिक निर्णय दिया है। कोर्ट ने जैन धर्म को हिंदू धर्म से अलग मानते हुए हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक देने से इनकार कर दिया। प्रथम अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश धीरेंद्र सिंह ने अपने आदेश में कहा कि जैन धर्म हिंदू धर्म की मूल वैदिक मान्यताओं से भिन्न है। उन्होंने 10वीं शताब्दी के जैन आचार्य वर्धमान सूरी द्वारा रचित आचार दिनकर ग्रंथ का हवाला देते हुए बताया कि जैनों की अपनी विवाह परंपरा और पर्सनल लॉ है जो हिंदू विवाह अधिनियम से अलग है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 2014 से जैन समुदाय अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त कर चुका है इसलिए उन्हें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक लेने का अधिकार नहीं है। इस फैसले ने राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा को जन्म दिया है। जैन समाज के विद्वानों ने न्यायालय के इस आदेश को ऐतिहासिक करार दिया क्योंकि इससे जैन धर्म के प्राचीन नीति शास्त्रों को समसामयिक कानूनी विमर्श में स्थान मिला है। वहीं यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि अगर जैन समाज का अपना पर्सनल लॉ है तो यह अब तक कानूनी रूप से मान्यता में क्यों नहीं आया। यह मामला अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती के रूप में पेश किया गया है। न्यायालय के इस फैसले ने न केवल जैन पर्सनल लॉ पर नई बहस छेड़ दी है बल्कि समान नागरिक संहिता की दिशा में भी एक नई चुनौती खड़ी कर दी है।