नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा ईपीआईसी (EPIC) नंबरों में कथित गड़बड़ी का खुलासा करने के बाद चुनाव आयोग घिरता नजर आ रहा है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने चुनाव आयोग को 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया था कि वह इस फ्रॉड को स्वीकार करे और सुधार करे। हालांकि अल्टीमेटम की समय सीमा खत्म हो रही है लेकिन चुनाव आयोग की ओर से अब तक कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं आया है। क्या है पूरा मामला? ममता बनर्जी ने दावा किया था कि देशभर में कई मतदाताओं के ईपीआईसी नंबर एक जैसे हैं जबकि चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए यह नंबर यूनिक होना चाहिए। उन्होंने इसे चुनावी धांधली बताते हुए आरोप लगाया कि भाजपा के पक्ष में चुनाव आयोग काम कर रहा है। चुनाव आयोग की सफाई और उस पर सवाल चुनाव आयोग ने 27 फरवरी को स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि कुछ राज्यों में अल्फा-न्यूमेरिक सीरीज के कारण ईपीआईसी नंबर एक जैसे हो सकते हैं लेकिन इससे फर्जी मतदान संभव नहीं होगा क्योंकि वोटर केवल अपने निर्धारित बूथ पर ही मतदान कर सकता है। इस पर टीएमसी ने चुनाव आयोग की गाइडलाइंस के हवाले से सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग की सफाई ही उसके फ्रॉड को उजागर कर रही है। टीएमसी का पलटवार और नए दस्तावेज टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने कई दस्तावेज सार्वजनिक कर चुनाव आयोग के दावे को झूठा बताया। उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट में फोटो और ईपीआईसी नंबर लिंक होता है और यदि एक ही ईपीआईसी नंबर अलग-अलग राज्यों में जारी किया गया है तो मतदाता को वोट डालने से रोका जा सकता है। इससे उन वोटर्स को टारगेट किया जा सकता है जो भाजपा के खिलाफ मतदान कर सकते हैं। क्या होगी आगे की रणनीति? साकेत गोखले ने कहा कि अगर चुनाव आयोग अपना गुनाह कबूल नहीं करता तो टीएमसी और भी दस्तावेज सामने लाएगी और कानूनी व राजनीतिक लड़ाई लड़ेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सुनियोजित साजिश है जिससे विपक्षी दलों के वोटरों को मतदान से रोका जा सके। अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इस मुद्दे पर कोई ठोस जवाब देता है या नहीं और क्या टीएमसी इस मामले को और आगे ले जाएगी। इस विवाद का असर आगामी लोकसभा चुनावों पर पड़ सकता है।