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राज्य
27-Sep-2020

कांग्रेस से बगावत कर भाजपा का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख में 6 माह के अंदर इस कदर गिरावट आई है कि वे राजनीति में अर्श से फर्श पर पहुंच गए हैं। इसका खुलासा सोशल मीडिया, वेबन्यूज और कुछ स्वयंसेवी संगठनों के सर्वे में हुआ है। सर्वे में कहा गया है कि सिंधिया का राजनीतिक भविष्य 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के परिणाम से तय होगा। सोशल मीडिया, वेबन्यूज और स्वयंसेवी संगठनों के सर्वे में यह बात सामने आई है कि उपचुनाव वाले क्षेत्रों में सिंधिया और उनके समर्थकों की गद्दारी सबसे बड़ी मुद्दा बनी हुई है। ग्वालियर-चंबल अंचल की सभी 16 सीटों के साथ ही मालवा-निमाड़ की सीटों पर किए गए सर्वे में 58 फीसदी लोगों ने सिंधिया और उनके समर्थकों की कांग्रेस के साथ की गई गद्दारी को नामाफी लायक बताया है। लोगों का कहना है कि जिन्होंने हमारे वोट का अपमान किया है, उन्हें हम सबक जरूर सिखाएंगे।सर्वे में यह भी कहा गया है कि उपचुनाव वाले क्षेत्रों में जनता की सहानुभूति पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ है। सर्वे में 62 फीसदी लोगों ने कहा कि कमलनाथ सरकार अच्छा काम कर रही थी। बिजली बिलों एवं किसानों की कर्जमाफी ने प्रदेश में कमलनाथ को लोकप्रिय बनाया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों ने गद्दारी करके चुनी हुई सरकार को गिराया है। इससे जनता नाराज है। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि मप्र में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी थी। इसमें सिंधिया का कोई बड़ा योगदान नहीं था। ग्वालियर-चंबल अंचल की जिन सीटों को जिताने का श्रेय सिंधिया लेते रहे हैं, वे सीटें एट्रोसिटी एक्ट के कारण मतदाताओं की नाराजगी से कांग्रेस को मिली थीं। यही नहीं सिंधिया लोकसभा चुनाव स्वयं हार गए। वहीं यूपी में अपने प्रभार वाले जिलों में भी कांग्रेस को नहीं जिता पाए थे। खुद गुना-शिवपुरी से लोकसभा चुनाव हार जाने और दिल्ली का बंगला केन्द्र सरकार ने खाली कराया इससे सिंधिया घबरा गए। सिंधिया की बगावत के बाद मप्र में कांग्रेस की सरकार गिर गई थी। सिंधिया अपने 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। महाराज के आने के बाद मप्र में फिर से शिवराज सत्ता में आ गए। भाजपा ने बदले में ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेज दिया। अब मप्र में 28 सीटों पर उपचुनाव होना है। अपनी साख जमाने के लिए सिंधिया को कम से कम अपने 22 पूर्व विधायकों को उपचुनाव जिताना होगा। लेकिन विभिन्न सर्वे रिपोर्ट में सिंधिया समर्थकों की हालत सबसे खराब बताई गई है। इस कारण सिंधिया का भविष्य उपचुनाव के भंवर में फंस गया है।