शिवराज पर भारी न पड़ जाये मोदी का कृषि बिल 2018 में जिस एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण के भरोसे भाजपा प्रदेश में चौथी बार सरकार बनाने का तानाबाना बुन रही थी, यही मुद्दे भाजपा की विदाई का कारण बन गए।आरक्षण के कारण सुलगे ग्वालियर-चंबल संभाग में पार्टी को 13 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था । यही स्थिति एक बार फिर उप चुनाव से पहले भी बनती दिख रही है दरअसल मोदी सरकार द्वारा पास किये गए कृषि और किसानों से जुड़े दो बिलों को लेकर किसानों के विरोध की गूंज संसद से सड़क तक सुनाई दे रही है. इसका मध्यप्रदेश के किसान भी पुरजोर विरोध कर रही है l केंद्र ने बिल में एमएसपी प्रणाली को जारी रखने का बेशक आश्वासन दिया होगा, लेकिन किसानों को भविष्य में इसके चरणबद्ध ढंग से समाप्त होने की संभावना है. इसके साथ ही एजेंसियां किसानों का 100 फीसदी गेहूं और चावल आदि खरीद कर उस पर एमएसपी की सहूलियत देती है, लेकिन किसान संगठनों को शक है कि निजी मंडिया खुल जाने से सरकारी एजेंसियों की खरीदी काफी घट जाएगी जिससे किसानों की निजी खरीद पर निर्भरता बढ़ेगी और कृषि पर कारपोरेट हावी हो जायेगा। इन्ही कारणों को लेकर प्रदेश का किसान भी सड़को पर उतर हुआ है l ग्वालियर-चंबल संभाग सहित प्रदेश की 28 सीटों पर उप चुनाव होना है। ऐसे में एट्रोसिटी एक्ट की तरह कही मोदी सरकार का कृषि बिल शिवराज सरकार पर भारी न पड़ जाये।